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जितिया व्रत की कथा: संतान की लंबी उम्र के लिए पढ़ें जीवितपुत्रिका व्रत की तीन मुख्य कथाएं 1

 

जितिया व्रत की कथा: संतान की लंबी उम्र के लिए पढ़ें जीवितपुत्रिका व्रत की तीन मुख्य कथाएं!

जितिया व्रत की कथा जीवितपुत्रिका व्रत कहानी

माताओं के लिए सबसे पवित्र और कठिन व्रतों में से एक है जितिया व्रत, जिसे जीवितपुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी को यह तीन दिनों का व्रत रखा जाता है। 2025 में यह व्रत 14 सितंबर को अष्टमी तिथि पर मुख्य रूप से मनाया जाएगा। इस व्रत का उद्देश्य संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करना है। जितिया व्रत की कथा (जितिया कथा) सुनना या पढ़ना व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इससे व्रत फलित होता है। इस ब्लॉग में हम जितिया व्रत की तीन मुख्य कथाओं – राजा जीमूतवाहन की कथा, चील और सियारिन की कथा तथा भगवान कृष्ण से जुड़ी कथा – को सरल भाषा में बताएंगे। यदि आप जितिया का कथा ढूंढ रही हैं, तो यहां पूरी जानकारी मिलेगी। आइए, इस पवित्र व्रत की कथा को जानें और संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करें!

जितिया व्रत का महत्व: क्यों रखती हैं माताएं यह निर्जला व्रत?

जितिया व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पूर्वी भारत में मनाया जाता है। यह व्रत माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और कल्याण के लिए रखती हैं। आश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी को नहाय-खाय, अष्टमी को खंड अष्टमी या जितिया (निर्जला व्रत) और नवमी को पारण किया जाता है। व्रत के दौरान माताएं भगवान जीमूतवाहन, मां पार्वती और शिवजी की पूजा करती हैं। कथा सुनने का समय शाम को प्रदोष काल में होता है। मान्यता है कि इस व्रत से संतान मृत्यु के मुख से बच जाती है और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। 2025 में जितिया व्रत 14 सितंबर को है, और द्विपुष्कर योग में पूजा विशेष फलदायी होगी। अब आइए, जितिया व्रत की कथा पर नजर डालें।

जितिया की कथा सुनने से व्रत का फल प्राप्त होता है। तीन मुख्य कथाएं हैं जो इस व्रत से जुड़ी हैं। इनमें राजा जीमूतवाहन की दानवीरता, चील और सियारिन की मित्रता तथा भगवान कृष्ण से संबंधित कहानी शामिल है। इन कथाओं को पूजा के बाद सुनना चाहिए।

जितिया व्रत की पहली कथा: राजा जीमूतवाहन की दानवीरता

प्राचीन काल में गंधर्व लोक में जीमूतवाहन नामक बुद्धिमान और दयालु राजा थे। वे शासन से संतुष्ट नहीं थे और राज्य की जिम्मेदारियां अपने भाइयों को सौंपकर जंगल चले गए। वहां उन्होंने तपस्या की और एक दिन गरुड़ राज (पक्षिराज) से मिले, जो नागों को खाने के लिए आते थे। जीमूतवाहन ने गरुड़ से कहा कि वे किसी निर्दोष नाग को न मारें, बल्कि उन्हें ही खा लें। गरुड़ ने उनकी दानवीरता देखी और प्रभावित होकर उन्हें वरदान दिया कि जो स्त्री इस व्रत की कथा सुनेगी और विधि-पूर्वक व्रत रखेगी, उसकी संतान मृत्यु से बच जाएगी। इस कथा से प्रेरित होकर माताएं जितिया व्रत रखती हैं। राजा जीमूतवाहन का त्याग संतान रक्षा का प्रतीक है।

यह कथा बताती है कि दान और त्याग से जीवन में सुख प्राप्त होता है। व्रत रखने वाली महिलाओं को इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

जितिया व्रत की दूसरी कथा: चील और सियारिन की मित्रता

एक जंगल में एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर चील रहती थी और नीचे झाड़ी में सियारिन। दोनों अच्छी सहेलियां थीं। एक दिन उन्होंने कुछ महिलाओं को जितिया व्रत रखते देखा और स्वयं भी संकल्प लिया। चील ने व्रत सख्ती से रखा, लेकिन सियारिन ने नियम तोड़े। व्रत के बाद चील के अंडे स्वस्थ निकले, जबकि सियारिन के शावक मर गए। सियारिन ने चील से पूछा तो चील ने बताया कि व्रत के नियमों का पालन ही फल देता है। तब से माताएं इस कथा को सुनकर व्रत का पालन करती हैं। यह कथा व्रत की निष्ठा का महत्व सिखाती है।

चील-सियारिन की यह कथा जितिया व्रत की सबसे लोकप्रिय कथा है। इसे सुनने से संतान को सुख मिलता है।

जितिया व्रत की तीसरी कथा: भगवान कृष्ण और द्रौपदी की कहानी

महाभारत काल में द्रौपदी को अपने पुत्रों की चिंता रहती थी। एक दिन मुनि धौम्य ने उन्हें जितिया व्रत रखने की सलाह दी। द्रौपदी ने व्रत रखा और कथा सुनी। इससे उनके पुत्रों को युद्ध में विजय मिली। भगवान कृष्ण ने भी इस व्रत का महत्व बताया कि यह संतान को मृत्यु से बचाता है। द्रौपदी के व्रत से पांडवों को सुख प्राप्त हुआ। यह कथा व्रत की शक्ति को दर्शाती है।

भगवान कृष्ण की इस कथा से व्रत का फल और बढ़ जाता है। माताएं इसे सुनकर संतान की रक्षा की प्रार्थना करती हैं।

जितिया व्रत की पूजा विधि: कैसे करें संपूर्ण पूजन?

जितिया व्रत की पूजा विधि सरल लेकिन कठिन है। नहाय-खाय के दिन स्नान के बाद फलाहार करें। अष्टमी को निर्जला व्रत रखें। शाम को प्रदोष काल में भगवान जीमूतवाहन, मां पार्वती और शिवजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। धूप-दीप, फूल, रोली, चंदन, मिठाई अर्पित करें। कथा पढ़ें या सुनें। पारण अगले दिन सुबह करें। व्रत में नमक, शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करें। यह व्रत संतान के लिए अमूल्य फल देता है।

2025 में जितिया व्रत 14 सितंबर को है। शुभ मुहूर्त शाम 4:42 से 6:14 बजे तक। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:36 से 5:21 बजे। अमृत काल दोपहर 12:12 से 1:48 बजे।

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यह ब्लॉग 14 सितंबर 2025 के लेटेस्ट अपडेट्स पर आधारित है। सभी कंटेंट सूचना उद्देश्य के लिए कॉपीराइट-फ्री। पूजा के लिए पंडित से सलाह लें।

 

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