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नेपाल में सोशल मीडिया बैन और Gen Z का आक्रोश 4

नेपाल में सोशल मीडिया बैन और Gen Z का आक्रोश

एक नया जनआंदोलननेपाल में हाल के दिनों में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। 4 सितंबर, 2025 को नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप, X (पूर्व में ट्विटर) सहित 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। इसका कारण इन प्लेटफॉर्म्स का नेपाल के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ पंजीकरण न कराना बताया गया। इस फैसले ने न केवल नेपाल के डिजिटल परिदृश्य को प्रभावित किया, बल्कि देश के युवाओं, खासकर Gen Z (1995-2010 के बीच जन्मे लोग) में भारी आक्रोश पैदा कर दिया। यह आक्रोश सड़कों पर उतर आया और देखते ही देखते एक बड़े जनआंदोलन में बदल गया।

सोशल मीडिया बैन का कारण

नेपाल सरकार ने यह प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर लगाया, जिसमें सभी घरेलू और विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नेपाल में संचालन से पहले पंजीकरण कराने और स्थानीय नियमों का पालन करने का निर्देश दिया गया था। सरकार ने इन प्लेटफॉर्म्स को 28 अगस्त से एक सप्ताह का समय दिया था, लेकिन मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप), अल्फाबेट (यूट्यूब), X, रेडिट और लिंक्डइन जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स ने इस निर्देश का पालन नहीं किया। परिणामस्वरूप, सरकार ने नेपाल टेलीकम्युनिकेशन अथॉरिटी को इन प्लेटफॉर्म्स को निष्क्रिय करने का आदेश दिया।
हालांकि, सरकार का कहना है कि यह कदम ऑनलाइन अपराधों, नफरत भरे भाषण और फर्जी खबरों को रोकने के लिए उठाया गया है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और असहमति की आवाजों को चुप कराने की कोशिश है।

Gen Z का गुस्सा और सड़कों पर प्रदर्शन

4 सितंबर की आधी रात को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बंद होने के बाद, नेपाल के युवाओं ने इसे अपनी आवाज को दबाने के प्रयास के रूप में देखा। 8 सितंबर को काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया। यह प्रदर्शन, जिसे ‘Gen Z प्रोटेस्ट’ के नाम से जाना जा रहा है, केवल सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और सरकार की तानाशाही रवैये के खिलाफ भी एक बड़ा आंदोलन बन गया।
प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे, जैसे “सोशल मीडिया पर बैन बंद करो, भ्रष्टाचार पर रोक लगाओ” और “युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ”। काठमांडू के मैतीघर और न्यू बनेश्वर जैसे इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन की ओर मार्च किया और बैरिकेड्स तोड़कर अंदर घुसने की कोशिश की। इस दौरान पुलिस ने रबर की गोलियां, आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, जिसके परिणामस्वरूप हिंसक झड़पें हुईं।

हिंसा और नुकसान

प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 19 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं। काठमांडू के सिविल अस्पताल और अन्य चिकित्सा केंद्रों में घायलों की भीड़ उमड़ पड़ी। एक टीवी पत्रकार, श्याम श्रेष्ठ, को भी रबर की गोली लगी, जो इस बात का सबूत है कि पुलिस की कार्रवाई अंधाधुंध थी। संयुक्त राष्ट्र ने इन हत्याओं की तत्काल और पारदर्शी जांच की मांग की है।
हिंसा बढ़ने के बाद काठमांडू और पोखरा में कर्फ्यू लागू कर दिया गया और नेपाल सेना को तैनात किया गया। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के दमक स्थित आवास पर भी पथराव किया, जिसके जवाब में पुलिस ने हवाई फायरिंग की।

गृह मंत्री का इस्तीफा

प्रदर्शनों के दबाव और बढ़ती हिंसा के बीच नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने नैतिक आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह इस्तीफा प्रधानमंत्री ओली को सौंपा। हालांकि, प्रदर्शनकारी अब ओली के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।


Generation Z is the most popular generation in history.

प्रतिबंधित प्लेटफॉर्म्स तक पहुंचने के लिए युवाओं ने वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) और डीएनएस वर्कअराउंड का इस्तेमाल किया। टिकटॉक और वाइबर जैसे पंजीकृत प्लेटफॉर्म्स पर विरोध प्रदर्शनों की योजना बनाई गई और जानकारी साझा की गई। टिकटॉक पर वायरल वीडियोज में नेताओं के बच्चों की शानदार जीवनशैली को आम नेपाली लोगों की कठिनाइयों के साथ तुलना की गई, जिसने युवाओं के गुस्से को और भड़काया।
आलोचना और वैश्विक प्रतिक्रियाइस बैन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना हुई है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक बताया, जबकि नेपाल के अपने पत्रकार संगठन, फेडरेशन ऑफ नेपाली जर्नलिस्ट्स, ने भी सड़कों पर उतरकर विरोध किया। आलोचकों का कहना है कि यह बैन केवल नियमन के लिए नहीं, बल्कि असहमति को दबाने और सरकार की आलोचना को रोकने के लिए है।

आगे क्या?

सूत्रों के अनुसार, सरकार अब इस बैन को हटाने पर विचार कर रही है। प्रधानमंत्री ओली ने एक आपातकालीन कैबिनेट बैठक बुलाई है, जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। हालांकि, युवाओं का गुस्सा केवल सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है। यह आंदोलन भ्रष्टाचार, नेताओं के बच्चों को मिलने वाले विशेषाधिकारों (जिन्हें ‘नेपो किड्स’ कहा जा रहा है), और आर्थिक असमानता के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह बन चुका है।
नेपाल के इस Gen Z आंदोलन ने न केवल देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि डिजिटल युग में युवा अपनी आवाज को दबने नहीं देंगे। यह आंदोलन नेपाल के भविष्य को नया आकार दे सकता है, बशर्ते सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से ले।

निष्कर्ष:

नेपाल का यह जनआंदोलन एक चेतावनी है कि युवा शक्ति को कम आंकना सरकारों के लिए भारी पड़ सकता है। क्या नेपाल सरकार इस संकट का समाधान कर पाएगी, या यह आंदोलन और बड़ा रूप लेगा? यह समय ही बताएगा।

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