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चंद्र ग्रहण 2025: आज 7 सितंबर को भारत में लगने वाला है यह खगोलीय घटना, जानें समय और महत्व

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चंद्र ग्रहण 2025: आज 7 सितंबर को भारत में लगने वाला है यह खगोलीय घटना, जानें समय और महत्व

 

7-8 सितंबर 2025 की रात को होने वाला पूर्ण चंद्र ग्रहण एक अत्यंत महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है। यह अपनी असाधारण रूप से लंबी अवधि और लगभग वैश्विक दृश्यता के कारण उल्लेखनीय है। इस घटना में चंद्रमा 82 मिनट की विस्तारित अवधि के लिए पृथ्वी की गहरी छाया में रहेगा । भारत, एशिया और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश हिस्सों में यह ग्रहण अपनी पूर्णता में देखा जा सकेगा। इस दौरान चंद्रमा का रंग तांबे जैसा लाल हो जाएगा, जिसे लोकप्रिय रूप से ‘ब्लड मून’ कहा जाता है ।   

यह रिपोर्ट इस खगोलीय घटना के दोहरे स्वरूप का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करती है। एक ओर, यह खगोल भौतिकी के सटीक और वस्तुनिष्ठ सिद्धांतों के साथ इस घटना की व्याख्या करती है। दूसरी ओर, यह भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के गहन और व्यक्तिपरक आयामों की पड़ताल करती है, विशेषकर सूतक काल और पितृ पक्ष के साथ इसके दुर्लभ संयोग के संदर्भ में। यह रिपोर्ट वैज्ञानिक व्याख्याओं, जैसे कि ‘ब्लड मून’ के पीछे के भौतिकी और सूतक काल के दौरान देखी जाने वाली विभिन्न प्रथाओं का एक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह दोनों दृष्टिकोणों को एक साथ प्रस्तुत करते हुए दर्शाती है कि कैसे एक ही घटना को आधुनिक विज्ञान और प्राचीन विश्वास प्रणालियों के माध्यम से समझा जा सकता है।

 

1. खगोलीय परिघटना: एक वैज्ञानिक विश्लेषण

 

यह खंड पूर्ण चंद्र ग्रहण के पीछे के वैज्ञानिक सिद्धांतों और इसकी विशिष्टताओं का विस्तृत विवरण प्रदान करता है, जिसमें घटना का सटीक डेटा और एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण शामिल है।

 

1.1 पूर्ण चंद्र ग्रहण की यांत्रिकी: पृथ्वी की छाया

 

चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो तब होती है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा लगभग एक सीधी रेखा में आ जाते हैं और पृथ्वी अपनी छाया चंद्रमा पर डालती है । यह स्थिति केवल पूर्णिमा की रात को ही संभव हो पाती है। इस दौरान, पृथ्वी अपनी दो परतों वाली छाया चंद्रमा पर डालती है। बाहरी और हल्की छाया को पेनुमब्रा (Penumbra) कहा जाता है, जबकि भीतरी और गहरी छाया को अंब्रा (Umbra) कहा जाता है । पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की अंब्रा छाया में प्रवेश कर जाता है।   

यह ग्रहण कई चरणों में घटित होता है। सबसे पहले, चंद्रमा हल्के पेनुमब्रल चरण में प्रवेश करता है, जो चंद्रमा की चमक में मामूली कमी के रूप में दिखाई देता है, जिसे नग्न आंखों से पहचानना अक्सर मुश्किल होता है । इसके बाद आंशिक ग्रहण का चरण शुरू होता है, जिसमें चंद्रमा का एक हिस्सा पृथ्वी की गहरी अंब्रा छाया में प्रवेश करना शुरू करता है, जिससे चंद्रमा पर एक काली छाया दिखाई देती है। अंत में, पूर्ण ग्रहण का चरण आता है, जब चंद्रमा पूरी तरह से अंब्रा छाया में ढक जाता है और चमकीला लाल या नारंगी रंग का हो जाता है ।   

1.2 ‘ब्लड मून’ का वैज्ञानिक कारण: अपवर्तित सूर्यप्रकाश का विज्ञान

 

‘ब्लड मून’ का मनमोहक लाल या नारंगी रंग कोई रहस्यमय घटना नहीं है, बल्कि यह एक सुस्थापित वायुमंडलीय प्रक्रिया का परिणाम है। जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच से गुजरती है, तो सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होकर छनता है। इस प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की छोटी तरंगदैर्ध्य (जैसे नीले और बैंगनी रंग) वायुमंडल के अणुओं द्वारा बिखेर दी जाती हैं । इस प्रक्रिया को ‘रेले स्कैटरिंग’ के नाम से जाना जाता है। इसके विपरीत, लाल और नारंगी जैसे लंबी तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश कम बिखरते हैं और पृथ्वी के वायुमंडल से मुड़कर या अपवर्तित होकर चंद्रमा की सतह तक पहुँचते हैं। यही लाल प्रकाश चंद्रमा की सतह को प्रकाशित करता है, जिससे वह लाल या तांबे जैसा दिखाई देता है ।   

इसकी गहनता में, इस घटना का रंग वायुमंडल में धूल, प्रदूषण या ज्वालामुखी की राख जैसे कणों की मात्रा पर निर्भर करता है । यदि वायुमंडल में कणों की मात्रा अधिक होती है, तो लाल रंग और भी गहरा और अधिक चमकीला दिखाई देता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि खगोलविद इस घटना को ‘ब्लड मून’ कहने से बचते हैं, क्योंकि यह शब्द ज्योतिषीय या धार्मिक संदर्भों से जुड़ा हुआ है। वे इसे ‘पूर्ण चंद्र ग्रहण’ कहना पसंद करते हैं ।   

1.3 प्रमुख समय और चरण (भारतीय मानक समय, IST)

 

7 सितंबर 2025 का चंद्र ग्रहण भारतीय मानक समय (IST) के अनुसार कई चरणों में होगा। विभिन्न स्रोतों में कुछ मामूली भिन्नताओं के बावजूद, एक आम समय-सारिणी इस प्रकार है, जो इस घटना के व्यापक अवलोकन के लिए एक आधिकारिक संदर्भ प्रदान करती है।

सारणी 1: पूर्ण चंद्र ग्रहण 2025 की समेकित खगोलीय समय-सारिणी (IST)

चरण समय और तिथि
पेनुमब्रल ग्रहण शुरू रात 8:58 बजे, 7 सितंबर 2025    
आंशिक ग्रहण शुरू रात 9:57 बजे, 7 सितंबर 2025    
पूर्ण ग्रहण शुरू रात 11:00 बजे, 7 सितंबर 2025    
ग्रहण का चरम रात 11:42 बजे, 7 सितंबर 2025    
पूर्ण ग्रहण समाप्त मध्यरात्रि 12:22 बजे, 8 सितंबर 2025    
आंशिक ग्रहण समाप्त सुबह 1:26 बजे, 8 सितंबर 2025    
पेनुमब्रल ग्रहण समाप्त सुबह 2:24 बजे, 8 सितंबर 2025    
ग्रहण की कुल अवधि लगभग 4 घंटे 26 मिनट (पूर्णता 82 मिनट)    

 

1.4 वैश्विक और भारतीय दृश्यता

 

यह ग्रहण अपनी व्यापक दृश्यता के कारण एक दुर्लभ खगोलीय घटना है। दुनिया की लगभग पूरी आबादी, 7 अरब से अधिक लोगों के लिए, यह घटना पूर्ण या आंशिक रूप से देखने योग्य होगी । यह एशिया और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में अपनी पूर्णता में देखा जा सकेगा, जबकि यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका के कुछ हिस्सों में इसके विभिन्न चरण दिखाई देंगे । अमेरिका के अधिकांश हिस्से इस घटना को नहीं देख पाएंगे, क्योंकि ग्रहण के समय चंद्रमा उनके क्षितिज से नीचे होगा ।  

भारत में, यह चंद्र ग्रहण पूरे देश में देखा जा सकेगा, बशर्ते मौसम साफ हो । दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और अन्य प्रमुख शहरों में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देगा । ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां प्रकाश प्रदूषण कम होता है, वहां इसे और भी बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।   

2. सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयाम: भारतीय परंपराओं का अन्वेषण

 

खगोलीय रूप से आकर्षक होने के अलावा, यह ग्रहण भारतीय संस्कृति और धार्मिक विश्वासों में गहराई से निहित है। यह विशेष रूप से आध्यात्मिक महत्व रखता है क्योंकि यह एक पवित्र अवधि के साथ मेल खाता है।

 

2.1 सूतक काल की अवधारणा

 

हिंदू परंपरा के अनुसार, ग्रहण से पहले की अवधि को सूतक काल कहा जाता है, जिसे शुभ नहीं माना जाता है । इस समय के दौरान, नकारात्मक ऊर्जाओं के वातावरण में फैलने की धारणा है, जिससे कई तरह की सावधानियां बरतने और आध्यात्मिक अनुशासन का पालन करने की सलाह दी जाती है ।  

 

2.2 सूतक काल के समय में भिन्नताओं का विश्लेषण

 

दिए गए विभिन्न स्रोतों में सूतक काल के समय में कुछ भिन्नताएँ पाई जाती हैं, जो विभिन्न क्षेत्रीय पंचांगों या ज्योतिषीय गणनाओं के बीच के अंतर को दर्शाती हैं। यह इस बात को उजागर करता है कि ‘भारतीय परंपरा’ एक एकात्मक अवधारणा नहीं है, बल्कि इसमें विभिन्न क्षेत्रों और मान्यताओं के अनुसार विविधताएं मौजूद हैं।

सारणी 2: सूतक काल के समय में भिन्नताएँ

जनसंख्या सूतक काल प्रारंभ सूतक काल समाप्त
सामान्य जन दोपहर 12:19 बजे , 12:57 बजे , 12:58 बजे , या 1:57 बजे  
रात 1:26 बजे, 8 सितंबर  
बच्चे, वृद्ध, अस्वस्थ शाम 5:48 बजे या 6:36 बजे  
रात 1:26 बजे, 8 सितंबर  

यह भिन्नता इस बात का उदाहरण है कि धार्मिक नियमों को कैसे व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जाता है। बच्चों, बुजुर्गों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूतक काल बाद में शुरू होता है, जो परंपरा के व्यावहारिक और करुणामय पहलू को दर्शाता है।

 

2.3 अनुष्ठान, सावधानियाँ और धार्मिक अभ्यास

 

सूतक और ग्रहण काल के दौरान कई गतिविधियों से परहेज करने की सलाह दी जाती है :  

  • निषिद्ध कार्य: मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे और देवताओं की मूर्तियों को स्पर्श नहीं किया जाता है। भोजन पकाने और खाने से भी परहेज करने की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त, गर्भवती महिलाओं को घर के अंदर रहने और चाकू, कैंची जैसी नुकीली वस्तुओं का उपयोग करने से बचने के लिए कहा जाता है ।  
  • अनुमोदित अभ्यास: इस समय का उपयोग आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए करना शुभ माना जाता है। इसमें मंत्र जाप (जैसे “ॐ नमः शिवाय” या “गायत्री मंत्र”), ध्यान और पवित्र ग्रंथों (जैसे भगवद गीता या रामचरितमानस) का पाठ करना शामिल है। शंख और घंटी बजाने से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने में भी मदद मिलती है ।  
  • ग्रहण के बाद के अनुष्ठान: ग्रहण समाप्त होने के बाद, वातावरण और शरीर की शुद्धि के लिए स्नान करना, विशेषकर गंगाजल से, एक आवश्यक अनुष्ठान है। इसके बाद दान-पुण्य के कार्य करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं ।  

 

2.4 पितृ पक्ष के दौरान ग्रहण का गहरा महत्व

 

इस ग्रहण का सबसे गहरा आध्यात्मिक पहलू पितृ पक्ष की शुरुआत के साथ इसका दुर्लभ संयोग है । हिंदू धर्म में, पितृ पक्ष वह पवित्र पखवाड़ा है जो दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित है। ग्रंथों के अनुसार, इस दौरान पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी के करीब आती हैं। जब ग्रहण इस अवधि के साथ मेल खाता है, तो आध्यात्मिक ऊर्जाएं कई गुना बढ़ जाती हैं, जिससे यह समय ‘कर्मिक त्वरक’ बन जाता है। इस दौरान किए गए अनुष्ठानों और प्रार्थनाओं को विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है।  

यह अनूठा संयोजन पूर्वजों की आत्माओं को शांति प्रदान करने और परिवार की कर्मिक समस्याओं (पितृ दोष) को ठीक करने का एक असाधारण अवसर माना जाता है। इस दौरान किए गए तर्पण (जल और काले तिल से पूर्वजों को अर्घ्य देना) और पिंड दान जैसे अनुष्ठानों को असाधारण योग्यता वाला माना जाता है। ज्योतिषीय रूप से, यह ग्रहण कुंभ राशि और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में हो रहा है, जिसमें चंद्रमा और राहु की युति है और बुध और केतु के साथ समसप्तक योग बन रहा है । गुरु की दृष्टि के कारण, यह माना जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं और युद्ध जैसी संभावित नकारात्मक ऊर्जाओं पर अंततः काबू पा लिया जाएगा, जबकि संगीत और कला के क्षेत्र के लोगों पर इसका अधिक प्रभाव देखा जा सकता है ।   

 

3. संश्लेषण: विज्ञान, परंपरा और आधुनिक अवलोकन का मेल

 

यह खंड वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को एक साथ लाता है, उनके मतभेदों और सामंजस्य के बिंदुओं की पड़ताल करता है।

 

3.1 बहस: वैज्ञानिक सुरक्षा बनाम पारंपरिक सावधानी

 

चंद्र ग्रहण के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों पर विज्ञान और परंपरा के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर देखा जाता है।

सारणी 3: अवलोकन और एहतियाती सलाह का तुलनात्मक विश्लेषण (वैज्ञानिक बनाम पारंपरिक)

पहलू वैज्ञानिक दृष्टिकोण पारंपरिक दृष्टिकोण
नग्न आंखों से देखना पूरी तरह से सुरक्षित है; कोई विकिरण या शारीरिक नुकसान नहीं होता है    
सीधे देखने से बचना चाहिए, खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए    
भोजन का सेवन भोजन अपरिवर्तित रहता है; कोई शारीरिक खतरा नहीं होता है     सूतक काल में भोजन अशुद्ध हो जाता है, इसलिए इसका सेवन वर्जित है    
गर्भवती महिलाएँ कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि ग्रहण से गर्भ या शिशु को नुकसान पहुँचता है     घर के अंदर रहने और नुकीली वस्तुओं से बचने की सलाह दी जाती है    
ग्रहण के बाद के अनुष्ठान स्वास्थ्य के लिए कोई चिकित्सा आवश्यकता नहीं है; यह मनोवैज्ञानिक प्रभाव हो सकता है    
शुद्धि और स्वास्थ्य के लिए स्नान और दान आवश्यक हैं    

यह अंतर ज्ञान की दो प्रणालियों के बीच एक मौलिक अंतर को दर्शाता है। जहाँ विज्ञान शारीरिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है, वहीं परंपरा का मानना है कि शरीर एक आध्यात्मिक पात्र है जो ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं से प्रभावित होता है। एक दिलचस्प बिंदु यह है कि कुछ वैज्ञानिक मान्यताएं भी ग्रहण के बाद स्नान के महत्व को मानती हैं, हालांकि एक अलग कारण से – वायुमंडल में संभावित रोगाणुओं या बैक्टीरिया के प्रसार से बचाव ।  

 

3.2 आधुनिक-युग का अवलोकन: स्काईवॉचर्स के लिए एक मार्गदर्शिका

 

आधुनिक समय में, इस घटना का अवलोकन वैज्ञानिक ज्ञान और तकनीकी प्रगति के साथ-साथ पारंपरिक सम्मान के साथ भी किया जा सकता है।

  • व्यावहारिक सुझाव: ग्रहण को देखने के लिए सबसे अच्छी जगह वह है जहाँ आसमान साफ हो और प्रकाश प्रदूषण कम हो । हालांकि नग्न आंखों से देखना पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन चंद्रमा की सतह के विवरण और उसके रंग के बदलावों को बेहतर ढंग से देखने के लिए दूरबीन या टेलीस्कोप का उपयोग करने की सलाह दी जाती है ।   
  • लाइव स्ट्रीमिंग: उन लोगों के लिए जो इसे सीधे नहीं देख सकते हैं, कई वैज्ञानिक संस्थान और संगठन लाइव स्ट्रीमिंग की सुविधा प्रदान करेंगे। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) ने अपने विभिन्न परिसरों से इस घटना को स्ट्रीम करने की घोषणा की है । नासा और इसरो जैसे अन्य संगठन भी इस घटना की लाइव स्ट्रीमिंग उपलब्ध करा सकते हैं । यह विकल्प दिखाता है कि कैसे प्रौद्योगिकी ने प्राचीन घटनाओं को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे दुनिया भर के लोगों को इस साझा ब्रह्मांडीय क्षण का अनुभव करने का अवसर मिलता है ।   

 

4. अनुवर्ती: 2025 के सूर्य ग्रहण पर एक दृष्टि

 

यह रिपोर्ट 2025 के अगले प्रमुख खगोलीय घटना, सूर्य ग्रहण की जानकारी भी प्रदान करती है।

 

4.1 21 सितंबर 2025 के सूर्य ग्रहण का विवरण

 

चंद्र ग्रहण के ठीक 15 दिन बाद, 21 सितंबर 2025 को एक आंशिक सूर्य ग्रहण लगेगा । यह ग्रहण एक वलयाकार (annular) सूर्य ग्रहण होगा, जिसमें सूर्य एक ‘अग्नि की अंगूठी’ जैसा दिखाई देगा । यह मुख्य रूप से अमेरिका, फिजी, न्यूजीलैंड और अटलांटिक महासागर के क्षेत्रों में दिखाई देगा ।   

4.2 भारत में दृश्यता और सूतक काल की प्रयोज्यता

 

यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा क्योंकि यह तब लगेगा जब भारत में रात होगी । चूँकि यह भारत में दृश्य नहीं होगा, इसलिए इसका सूतक काल भी यहाँ लागू नहीं होगा और इसका कोई धार्मिक या ज्योतिषीय प्रभाव नहीं माना जाएगा ।  

5. निष्कर्ष

 

7-8 सितंबर 2025 का पूर्ण चंद्र ग्रहण एक बहुआयामी घटना है जो खगोलीय विज्ञान और भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के बीच एक दुर्लभ और शक्तिशाली संगम प्रस्तुत करती है। एक तरफ, यह प्रकाश, छाया और वायुमंडलीय भौतिकी का एक शानदार प्रदर्शन है। दूसरी ओर, यह आध्यात्मिक शुद्धि, पूर्वजों के सम्मान और ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के साथ आत्म-संबंध स्थापित करने का एक पवित्र अवसर है।

यह घटना ब्रह्मांड और मानव संस्कृति के बीच के गहरे संबंध की याद दिलाती है, जो अरबों लोगों को एक साझा क्षण में खगोलीय आश्चर्य और श्रद्धा के साथ जोड़ती है। यह खगोल विज्ञानियों, ज्योतिषियों, फोटोग्राफरों और आम स्काईवॉचर्स के लिए एक समान रूप से एक अवसर प्रदान करता है, ताकि वे इस दुर्लभ और यादगार रात के आकाश की घटना का अनुभव कर सकें।

 

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