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तुलसी विवाह 2025: पूरी मार्गदर्शिका — तिथि, मुहूर्त, कथा, विधि और आरती

तुलसी विवाह 2025: पूरी मार्गदर्शिका — तिथि, मुहूर्त, कथा, विधि और आरती

 

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तुलसी विवाह 2025: पूरी मार्गदर्शिका — तिथि, मुहूर्त, कथा, विधि और आरती

संक्षेप्‍त, उपयोगी और धर्म-केंद्रित जानकारी | अपडेट: 2025
तुलसी-विवाह
तुलसी पूजा
कार्तिक मास

 

तुलसी पूजा — महत्व और क्यों मनाते हैं?

हिंदू परंपरा में तुलसी (Holy Basil) को तुलसी माता कहा जाता है और इसे भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी का प्रिय माना गया है। तुलसी का दैनिक पूजन घर में सुख-समृद्धि, स्वच्छता और आरोग्य लाता है। पारंपरिक मान्यता है कि तुलसी का सम्मान करने से परिवार पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।

संक्षेप: तुलसी पूजा से वैवाहिक सुख, संतान-प्राप्ति, घर की समृद्धि और रोग निवारण के लिए फलदायी माना जाता है।

तुलसी विवाह 2025 — मुख्य तिथि और वैकल्पिक तिथियाँ

2025 में पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार तुलसी विवाह के अवसर मुख्य रूप से 2 नवंबर 2025 को मनाए जा रहे हैं। कई जगहों पर देवउठनी एकादशी (1 नवम्बर) को भी विवाह का विकल्प चुना जा सकता है, पर मुख्य शुभ मुहूर्त 2 नवम्बर माना गया है। विवाह एकादशी से पूर्णिमा (आम तौर पर 1-5 नवम्बर) की अवधि में भी किया जा सकता है।

2 नवम्बर 2025 (मुख्य)

  • शुभ तिथि: 2 नवम्बर 2025
  • स्थान: पूरे भारत में परंपरा के अनुसार मनाएं

प्रमुख मुहूर्त (दिल्ली अनुसार, IST)

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:50 AM – 5:42 AM
  • अभिजित मुहूर्त: 11:59 AM – 12:45 PM
  • गोधूलि मुहूर्त (शाम): 6:04 PM – 6:30 PM — विशेष रूप से शुभ
  • निशिता मुहूर्त: रात 11:39 PM – 12:31 AM (3 नवम्बर)

ध्यान दें: स्थानीय नक्षत्र, भद्रा और स्थानानुसार मुहूर्त बदल सकता है। अपने क्षेत्र के पंडित या स्थानीय पंचांग से अंतिम मुहूर्त अवश्य जांच लें।

 

तुलसी विवाह की कथा (संक्षेप में)

पौराणिक रूप से तुलसी का संबंध वृंदा और विष्णु से बताया जाता है। कथा में वृंदा नाम की एक महान पतिव्रता स्त्री थी जो राक्षस जालंधर की पत्नी थी। विष्णु के खेल से हुआ दुःख और उसके बाद की घटनाओं से तुलसी का जन्म हुआ। भगवान विष्णु ने वचन दिया कि जो मनुष्य तुलसी का विवाह शालिग्राम (या विष्णु रूप) के साथ करेगा, उसे लोक-परलोक में यश मिलेगा। यह कथा विवाह के दौरान पढ़ी जाती है और इसका पाठ विधि-अनुसार किया जाता है।

तुलसी विवाह की विधि — सरल चरण

नीचे संक्षेप में आमतौर पर जो विधि अपनायी जाती है वह दी जा रही है। अलग-अलग घरों और समुदायों में रितियाँ थोड़ी भिन्न हो सकती हैं।

पूजा-सामग्री (सामान्य सूची)

  • तुलसी का पौधा (स्वस्थ एवं घर के आंगन में स्थापित)
  • शालिग्राम या विष्णु मूर्ति / तस्वीर
  • चुनरी (तुलसी ढकने के लिए), फूल, राखी/नारियल, सिंदूर
  • मेहंदी, चूड़ियाँ, बिंदी, फल, मिठाई
  • दीपक, अगरबत्ती, नैवेद्य (प्रसाद), पान-सुपारी
  • मंडप के लिए गन्ने/केले के पत्ते और सजावट

 

मुख्य चरण

  1. आंगन में तुलसी के आसपास साफ मंडप सजाएँ और तुलसी को दुल्हन की भाँति चुनरी व फूलों से सजाएँ।
  2. शालिग्राम अथवा भगवान विष्णु का प्रतिनिधि स्वरूप (जिसे वर माना जाएगा) मंडप में विराजित करें।
  3. पंडित के साथ या पारंपरिक मंत्रों के साथ तुलसी का श्रृङ्खलाबद्ध पूजन—तुलसी को जल-अर्पण, अक्षत एवं फूल चढ़ाना।
  4. तुलसी और शालिग्राम के बीच सात फेरों जैसा प्रतीकात्मक अनुष्ठान कराएँ (स्थानीय रीति के अनुसार)।
  5. कथा का पाठ (तुलसी विवाह कथा) और भजन-आरती के बाद प्रसाद वितरण।
सुझाव: पूजा के दौरान शुद्धता बनाए रखें — साफ कपड़े, सुपाच्य प्रसाद और श्रद्धा से विधि का पालन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

तुलसी विवाह में प्रयोग किये जाने वाले मंत्र (उदाहरण)

पूजा में पारंपरिक श्लोक/मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। एक समर्पित तुलसी मंत्र इस प्रकार है (संक्षेप):

मंत्रों का उच्चारण पंडित के मार्गदर्शन में करें — उच्चारण एवं छंद का सही होना अनुष्ठान की गरिमा बढ़ाता है।

तुलसी माता की आरती — गीत (उदाहरण)

नीचे एक पारम्परिक आरती के कुछ पद दिये जा रहे हैं जिन्हें आप शाम के समय आरती में गा/पढ़ सकते हैं:

जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर।
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता॥
मैय्या जय तुलसी माता॥

आरती सामान्यतः शाम के समय, विशेषकर कार्तिक मास में भक्ति-भाव से की जाती है।

रंगोली और सजावट आइडिया

  • तुलसी के चारों ओर कमल, स्वस्तिक या ‘जय तुलसी माता’ लिखकर फूलों की रंगोली बनाएं।
  • छोटे दीयों की सेरा (वृत्ताकार) बनाकर शाम को प्रकाश से मंडप सजाएँ।
  • मंडप के लिए गन्ने/केले के पत्ते का उपयोग पारंपरिक और शुभ होता है।

रोज़ाना पूजा का सामान्य समय और वर्जनियाँ

रोजाना पूजा: पारंपरिक रूप से शाम के प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) में तुलसी को जल चढ़ाना, परिक्रमा और दीप जलाना शुभ माना जाता है। कार्तिक मास में विशेष रूप से रोज पूजा का महत्व बढ़ जाता है।

वर्जित दिन: कई परंपराओं में रविवार को तुलसी को स्पर्श न करने की सलाह दी जाती है (कुछ समुदायों के अनुसार) — इसे तुलसी माता का विश्राम दिवस माना जाता है। साथ ही एकादशी पर पूजा विधियों में नियंत्रण रखा जाता है। यह स्थानीय रीति पर निर्भर करता है।

आधुनिक प्रचलन और 2025 के अपडेट

वर्ष 2025 में तुलसी विवाह के संदर्भ में प्रमुख खबरें और लोकप्रचलन रहे — त्यौहार के आसपास पूजा सामग्री की मार्गदर्शिका, सामुदायिक आयोजन, और लोक-परंपरा के साथ नए रचनात्मक रंगोली/मंडप आइडिया सोशल प्लेटफॉर्म्स पर लोकप्रिय रहे। कई परिवारों ने कोविड-युग के बाद भी पारिवारिक और सामुदायिक सुरक्षित आयोजन को प्राथमिकता दी।

स्थानीय सामाजिक नियमों और मौसम की परिस्थितियों के अनुसार आयोजन में बदलाव कर सकते हैं — योजनाओं को अंतिम रूप देने से पहले अपने स्थान के पंडित/समुदाय से संपर्क करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. क्या तुलसी विवाह सिर्फ हिंदू घरों में ही होता है?

यह एक पारंपरिक हिन्दू त्यौहार है। परन्तु आज सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में यह परंपरा सामूहिक तौर पर भी देखी जा सकती है।

2. क्या तुलसी का पौधा घर में रखना जरूरी है?

हिंदू परंपरा में तुलसी का रख-रखाव शुभ माना जाता है—यदि संभव हो तो आंगन में या बालकनी में तुलसी रखें।

3. तुलसी विवाह में कौन-कौन शामिल हो सकते हैं?

परिवार, पड़ोसी और समुदाय के सदस्य आम तौर पर हिस्सा लेते हैं। विवाह और पूजन की विधि परंपरा व परिवार की मर्ज़ी के अनुसार तय होती है।

समापन (मूल संदेश)

तुलसी पूजा और तुलसी विवाह न केवल धार्मिक अनुष्ठान हैं, बल्कि यह हमारे पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों की याद दिलाते हैं — सम्मान, श्रद्धा और परंपरा। 2025 का यह अवसर श्रद्धा के साथ मनाएँ, शुद्धता बनाए रखें और स्थानीय रीति-रिवाजों का आदर करें।

 

© 2025 • पारम्परिक मार्गदर्शिका — यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। किसी भी शुभ मुहूर्त या अनुष्ठान के लिए स्थानीय पंडित/पंचांग से परामर्श अवश्य लें।

 

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