बिहार 2025 चुनाव: कौन जीता, कौन हारा – सत्ता का नया गणित
द्वारा समाचार टीम | अपडेटेड: 14 नवंबर 2025, 10:19 PM IST
बिहार में सत्ता का नया खेल: एनडीए की शानदार जीत
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे धमाकेदार रहे हैं! नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) ने 243 सदस्यों वाली विधानसभा में 200 सीटों का आंकड़ा पार कर लिया है, जो पिछले दशक की सबसे बड़ी जीत है। यह प्रदर्शन 2010 के मजबूत प्रदर्शन से भी बेहतर है। आज, 14 नवंबर 2025 को मतगणना जारी है, और साफ है कि एनडीए ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। आइए जानते हैं कि इस चुनाव में कौन चमका और कौन फीका पड़ा, साथ ही सत्ता के इस नए समीकरण को समझते हैं।
इस चुनाव में कई बड़ी कहानियां सामने आई हैं, जैसे चिराग पासवान की शानदार वापसी और नीतीश कुमार का अनुभव फिर से भारी पड़ना। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव और कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। तो चलिए, विस्तार से देखते हैं कि बिहार की सियासत में क्या बदला।
चुनाव के मुख्य नतीजे
- कुल सीटें: 243
- एनडीए की सीटें: 200+ (अभी तक)
- मतगणना स्थिति: 14 नवंबर 2025, रात 10:19 बजे तक जारी
कौन बने विजेता?
नीतीश कुमार: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग 20 साल की सत्ता में रहते हुए एंटी-इनकंबेंसी की चुनौती को मात दी है। उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) 80 से अधिक सीटों पर आगे है, जो एनडीए की बड़ी जीत में अहम योगदान दे रही है। यह जीत नीतीश को पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनाएगी और तेजस्वी यादव के “युवा बनाम अनुभव” के नैरेटिव को रोक देगी।
चिराग पासवान: चिराग पासवान की वापसी इस चुनाव की सबसे बड़ी कहानी है। 2020 में सिर्फ एक सीट जीतने के बाद, उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने 6% वोट शेयर को 29 में से 22 सीटों में बदल दिया। दलित और युवा वोटरों का समर्थन उन्हें एनडीए में मजबूत बना रहा है।
असदुद्दीन ओवैसी और AIMIM: असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने सीमांचल क्षेत्र में फिर कमाल दिखाया। उन्होंने जोकीहाट, कोचाधामन, अमौर, बहादुरगंज और बैसी जैसी 5 सीटें जीतीं, जो 2020 की तरह उनकी पकड़ को दर्शाती हैं।
छोटे सहयोगी: जितन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) ने 6 में से 5 सीटें जीतीं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) 4 सीटों पर आगे है। इन छोटे साथियों ने एनडीए को 200 सीटों तक पहुंचाने में मदद की।
कौन रहा हारने वाला?
तेजस्वी यादव और आरजेडी: तेजस्वी यादव, जो विपक्ष के मुख्यमंत्री चेहरे थे, एंटी-इनकंबेंसी को वोट में नहीं बदल सके, हालांकि उन्होंने रघुपुर सीट बचा ली। उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को सिर्फ 25 सीटें मिलीं, जो 2010 के 22 से थोड़ी बेहतर है, लेकिन 2020 की सफलता के बाद यह बड़ा झटका है।
राहुल गांधी और कांग्रेस: कांग्रेस फिर बिहार में असर नहीं दिखा सकी और एकल अंक में सिमट गई। राहुल गांधी की “वोटर अधिकार यात्रा” और मतदान प्रक्रिया पर सवालों के बावजूद पार्टी 61 सीटों में से सिर्फ 3 जीत सकी और 3 पर आगे है, जो 2020 के 19 सीटों से भी कम है।
प्रशांत किशोर: राजनीतिक रणनीतिकार से कार्यकर्ता बने प्रशांत किशोर की जन सूरज पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। दो साल की पदयात्रा के बावजूद उनकी पार्टी को कई सीटों पर NOTA से भी कम वोट मिले, और उन्होंने सीटें न लड़ने का फैसला भ्रम पैदा कर गया।
मुकेश साहनी: सीमांचल में महागठबंधन का चेहरा मुकेश साहनी अपनी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) से उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। निषाद वोट को एकजुट करने की कोशिश विफल रही, और यह वोट एनडीए की तरफ चला गया।

बिहार में सत्ता बदलाव का मतलब
इस जीत से एनडीए ने बिहार में अपनी पकड़ मजबूत की है, जबकि विपक्ष को नई रणनीति की जरूरत है। नीतीश कुमार का अनुभव और चिराग पासवान की युवा ऊर्जा ने मिलकर यह कमाल दिखाया। दूसरी ओर, तेजस्वी और कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा।
आगे क्या?
चुनाव नतीजों से साफ है कि बिहार की जनता ने स्थिरता और अनुभव को तरजीह दी। आने वाले दिनों में सरकार गठन और नीतियों पर नजर रहेगी। क्या आप इस जीत या हार पर अपनी राय देना चाहेंगे? नीचे कमेंट में बताएं!
